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Chhattisgarh: ब्यूरोक्रेसी से लेकर सियासत में तैरती अफ़वाहों पर आधारित वीकली कॉलम - सोलह दूनी आठ

द हिट डॉट इन के वीकली कॉलम में इस हफ़्ते पढ़िए -ये कौन माननीय हैं,साहब काहे नहीं आए,रीड केयरफ़ुली सर,कैसे होगा श्रीमान,हिट विकेट,रवि किरण की चमक,और दूसरे पन्ने के आख़िरी दो पैरा।

सोलह दूनी आठ
By: याज्ञवल्क्य
10 days ago
Chhattisgarh: ब्यूरोक्रेसी से लेकर सियासत में तैरती अफ़वाहों पर आधारित वीकली कॉलम - सोलह दूनी आठ

ओनली वन थाउंसड

मध्य छत्तीसगढ़ का एक जिला है। वहाँ ट्रेफ़िक से जुड़े दो साहबान भिड़ गए। मसला ओनली वन थाउंसड का था। शुक्र है कि मामला बात बहस से उपर नहीं गया,लेकिन उपर भगवान नीचे कप्तान वाली कहावत यूँ ही थोड़े है। जहां का यह मामला है उस इलाक़े के कप्तान के बारे में मशहूर है कि ना ख़ुद खाता है और ना खाने देता है। किसी ने कप्तान तक बात पहुंचा भी दी है।अफ़वाहें हैं कि कप्तान हज़ार रुपए वाली दुकान का भी शटर गिरा कर ताला लगा रहा है और चाभी नदी में फेंकने की तैयारी में है।

हिट विकेट लेकिन ये कैसे 

अंततः आईएएस साहबान की जंबो लिस्ट निकल गई है।इस लिस्ट में करीब 14 नाम ऐसे हैं जो हिट विकेट हो लिए हैं। जाहिर है कि कुछ नाम फिल्ड में तैनात साहब सरकार लोग के भी हैं। अब जैसे खैरागढ़ और सारंगढ़ में साहब सरकार के साथ हुआ, यही आलम फिल्ड में तैनात कुछ और के साथ भी हो गया।सचिव पद पर नज़र फिरायें तो एक सर जी यूँ लुढ़क गए कि उनका वरिष्ठ अधिकारी लोगों के लिए जारी न्यौता निमंत्रण पत्र ज़ोर वायरल हो गया था।कुंजाम जी भी गए नहीं बल्कि भेजे गए वाले कॉलम में मौजूद हैं।

गुड गवर्नेंस के सूरज की चमक 

सूरज का एक नाम होता है रवि,लेकिन एक नाम दो नाम,पर्यायवाची छोड़िए।देखिए ऐसा है कि,अब सूरज है तो चमक तो होगी ही।फिर जब बात सुशासन सरकार याने गुड गवर्नेंस की हो तो चमक तो चौतरफ़ा चौचक ही रहनी है।तो सुशासन चहुंओर चमक रहा है,तो कहीं कहीं छलक भी जा रहा है।पर चमकने छलकने के फेर से अलग कई बार ऐसा भी होता है चमक में बिल्कुल नज़दीक का ही नजारा नहीं दिखता,अब दिखेगा भी कैसे,चमक के केंद्र में सामान्य आँख से दिखाई कहाँ देता है।रवि याने सूर्य को आँखों से देखकर कोई कैसे बताएगा कि ब्लैक होल तो इधर ही डेवलप हो रहा है।लेकिन अफ़वाहबाजो की उड़ान देखिए।जंबो लिस्ट में एक नाम शामिल नहीं होने का हवाला देते हुए इसे ही ब्लैक होल का लच्छन बता रहे हैं।ये सही है कि,फील्ड में तैनात यह साहब इस कदर धुंआधार बैटिंग कर रहे हैं कि,उनके पहले के सारे मालिक जो जिले में रहे हैं वह अब देवता लगने लगे हैं।लेकिन ये है सुशासन की गर्वमेंट,सुशासन गर्वमेंट की रवि किरणों से सब चमचमाया है,तो सरकार की जै जै,सरकार के फ़ैसले की जै जै।

ये होगा तो कैसे होगा सर

जी श्रीमान जी वाले महकमे में उपर से ठीक दिख रहा है लेकिन जो आलम है उससे लगता है कि, जल्दी ही कोर्ट में मामले चारों खाने चित्त होते दिखने लगेंगे। बीएनएसएस के क़ायदे के साथ एफआईआर दर्ज करने के जो नए नियम हैं, उसमें फिलहाल तो रामजी की कृपा से एंट्री वगैरह हो जा रही है, लेकिन चतुर सुजान वकील साहबान लोग का ढंग से ध्यान चला गया तो कोर्ट में गति दुर्गति तय समझिए।हर फोटो हर वीडियो को तैयार करना और जीपीएस के साथ साथ उसी टाइम का उल्लेख करते एफ़आइआर के नए फॉर्मेट पर एंट्री करना,यह वह मसला है जिसके मुकम्मल साधन संसाधन सभी जगह सबके पास नहीं है।ज़ाहिर है कोर्ट में वकील साहब खेलने पर आ गए तो पुलिस चारों खाने चित हो जाएगी।

रीड केयरफ़ुली सर

व्हाट्सएप चैट के मसले पर CBI वाले साहबान का आना हो ही गया है। बताते हैं इस बार मसला “मारिस कम घसिटिस बहुते जियादा” वाला होने वाला है। एक साहब जो आराम से “भंगडा पाले आजा आजा” का गीत फुल वाल्यूम में सुन रहे थे,सीबीआई की एंट्री के बाद उनके प्रचार प्रमुखों ने गीत बजाना शुरु किया है कि, सर तो व्हाट्सएप में ही “डाँट” लगाए थे। अब उन साहब को समझना चाहिए कि, सारी “कृपा” रुकने का मसला ही उनके ये सब प्रचार प्रमुख हैं। अब देखिए अफवाहबाजों की उड़ान, हवा उड़ा रहे हैं कि, सीबीआई के बाद इसी व्हाट्सएप चैट के एक बिंदु विशेष पर ईडी की नज़रें इनायत होने वाली है, क्योंकि मसला हवाला से भी जुड़ रहा है।

ये गीत काहे बज रहा है

व्हाट्सएप चैट पर सीबीआई की एंट्री हुई और अगले दिन कुछ व्हेरी इंपोर्टेंट टेबल के आसपास से सहाफी गुज़रा। उस टेबल पर तीन दिग्गज साहब बैठे थे। सहाफ़ी को पूछे लिट्टी खाओगे पत्रकार बाबू, सहाफी के जवाब के इंतज़ार के बगैर लिट्टी चोखा आ गया। अब सहाफ़ी ने माहौल कूल देखा तो पूछ दिया कि, सब तो ठीक हो ही रहा था ये सीबीआई किधर से। जवाब में एक साहब ने कहा, सवाल बहुत पूछते हो, तुम ये गाना सुनो। मनोज तिवारी के स्वर में गीत के बोल थे -“हम बिहारी,दिलवा के भोला भाला,हमरे से नेता, सबके नचावे वाला, यू पी के भईया हमनी के बोला जाला..पूरब के बेटा हमनी के बात निराला..हमरा के मत बूझिया ओऽऽऽ का बूझला तूं..”

दूसरे पन्ने के आखिरी दो पैरा

भगत सिंह चौक के पास बांकेलाल सर टकराए। बांकेलाल सर एकदम हैप्पी मूड में थे। नागराज सीरिज़ की कॉमिक्स को सहेज कर रखते हुए बांकेलाल सर ने सहाफी से कहा -“देखो ऐसा है कि,सीबीआई का बेस बने एफआईआर में नाम नहीं लिखा गया परंतु दूसरे पन्ने का आखिरी दो पैरा तो कम से ज्यादा ध्यान से पढ़ना था।” बांकेलाल सर यह कहते हुए मैग्नेटो मॉल की तरफ रेंग दिए। सहाफ़ी ने फौरन से पेश्तर बेसिक एफ़आइआर पढ़ी, बांकेलाल सर ने सही कहा था। उस बुनियादी एफआईआर में यूँ लिखा तो कुछ भी नहीं है और बवाल ये है कि छोड़ा भी कुछ नहीं है।

साहब काहे नहीं आए

मंत्रालय में बेहद महत्वपूर्ण बैठक थी,महत्वपूर्ण इस मायने में कि यह बैठक ही सरकार का फ़ैसला कहलाती है।इस बैठक में जो भी फ़ैसला हुआ सो तो हुआ ही,लेकिन अफ़वाह सबपर भारी पड़ी।अफ़वाह उड़ी कि,साहेब मीटिंग में नहीं आए।बताते हैं साहेब सेक्रेट्रिएट में ही थे, लेकिन नहीं आए।उनका ना आना भी हवाबाज़ों के लिए नई पुड़िया छोड़ने का मसला बन गया है।अब हवाई पुड़िया का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं है।लेकिन ये तो सही है कि,सर अगर जाते भी हैं तो या तो फ़ोटो लिया नहीं जाता या फ़ोटो कट जाता है।हो सकता है गए भी हों लेकिन दिखे ना हों।

ये कौन माननीय हैं 

उत्तर छत्तीसगढ़ के एक माननीय की व्यवसायिक समझ मिसाल की तरह है।अफ़वाह है कि,ज़मीन को लेकर उनका उद्यम उन्हे भूपति नहीं बनाता लेकिन उससे कम भी नहीं बनाता है।"जो ज़मीन सरकारी है वो ज़मीन हमारी है" के नारे से प्रेरित माननीय और उनके स्वजन को लेकर विरोधियों ने हवा उड़ा दी है कि,गाड़ी में कोरा पेपर पड़ा रहता है,बस दस्तख़त कराओ और एग्रीमेंट फ़ाइनल।माननीय भी जानते हैं कि, जीत तो धोखे से मिल गई थी,अगली बार टिकट की भी गारंटी नहीं है,तो पूरा श्रम उधर ही है जिससे विरासत बन सँवर जाए ताकि पीढ़ियों तक आराम रहे।

 

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